Wednesday, July 04, 2012

जिंदा


बढती हुई इमारतें
पथरीली शुष्क इबादतें
जगती बेजान सड़क
पेट्रोल के जिस्म की महक

हँसते हुए मशीन
चौराहे - धूमिल गमगीन;
स्वस्थ कचड़े का पहाड़,
नाले के उस पार

सांस लेते छल्ले
इश्क़ फरमाते दल्ले
Generators के ठहाके
Computers के इलाके

शहर में हर निर्जीव जिंदा है, पर
आदमी की आत्मा मर गयी

हम चुनेंगे कठिन रस्ते, हम लड़ेंगे

हम चुनेंगे कठिन रस्ते जो भरे हो कंकड़ों और पत्थरों से  चिलचिलाती धूप जिनपर नोचेगी देह को  नींव में जिसके नुकीले काँटे बिछे हो  हम लड़ेंगे युद्...