Tuesday, August 31, 2010

नियत

कतल कुछ मैं भी करता हूँ,
कतल आप भी कर लीजे
दरिया खून से अब बस सूर्ख़ हो जाए

लकीरें मैं तनिक खींचू, 
दीवारें आप खड़ी कर लीजे 
अर्ज़ ख़ुद में सिमट कर बस दफ़्न हो जाए   

भूखे पेट की अर्ज़ी,
कहाँ कोई आज सुनता है...
कि बोटियाँ नोच कर अपनी
भूख कुछ कम ही हो जाए 

तमाशा आप का लिक्खा, 
गर्द और रंज लाया है  
दुआओं में परिंदों ने बस राख़ पाया है.

शर्म कुछ मैं भी करता हूँ,
शर्म कुछ आप कर लीजे
कुछ अश्कों को पीकर शायद,
अपनी नियत बदल जाए 

हम चुनेंगे कठिन रस्ते, हम लड़ेंगे

हम चुनेंगे कठिन रस्ते जो भरे हो कंकड़ों और पत्थरों से  चिलचिलाती धूप जिनपर नोचेगी देह को  नींव में जिसके नुकीले काँटे बिछे हो  हम लड़ेंगे युद्...