Thursday, May 21, 2009
समाज
तुम,
मैं,
और बीच में,
आधे चाँद की ख्वाइश;
टेढ़ी मेढ़ी सच्चाई;
विचारों के विवाद;
लेकिन,
बस,
आधी रोटी की हकीकत।
तुम,
मैं,
और बीच में,
वही सड़क,
शाश्वत चलती हुई।
तुम थकते नही,
मैं पार करना नही चाहता।
जब थक जाऊंगा,
साँसें फ़ूल जाएँगी,
ज़ज्बा ख़त्म हो जाएगा,
उस पार आकर,
मैं भी,
तुम बन जाऊंगा...
Subscribe to:
Posts (Atom)
हम चुनेंगे कठिन रस्ते, हम लड़ेंगे
हम चुनेंगे कठिन रस्ते जो भरे हो कंकड़ों और पत्थरों से चिलचिलाती धूप जिनपर नोचेगी देह को नींव में जिसके नुकीले काँटे बिछे हो हम लड़ेंगे युद्...
-
जब कभी, मेरे पैमाने में, ख्वाइशों के कुछ बूंद छलक जाती हैं, तुम्हारी यादों की खुशबू, बहकी हुई हवाओं की तरह, मेरे साँसों में बिखर जाती हैं, ...
-
कल ऑफिस से लौटा तो अगस्त्य ने दरवाज़े पर आकर अपनी अस्पष्ट भाषा में चिल्लाते हुए स्वागत किया| उत्तर में मैंने दोगुनी आवाज़ में बेतुके वाक्य चीख़...
-
लिखो तो ख़ुद को खोल कर लिखो सतहें छिल कर लिखो, आत्मा निचोड़ कर लिखो ढकोसले से भरी दनियादारी पर लिखो तरस आ जाये तो लाचारी पर लिखो प...